मंदी के दौर में खरीदी दो विदेशी कंपनी, आज विदेशी भी मानते हैं लोहा
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कुछ इस तरह की इंसानियत के धनी थे रतन टाटा। अब वह रिटायर हो चुके हैं लेकिन आज तक उनका जैसा आदमी पैदा नहीं हुआ। एक लाख में नैनो का उत्पादन उन्हीं के दिमाग की उपज थी क्योंकि वह चाहते थे कि देश में हर आदमी के बस में कार हो। आज भी नैनो से सस्ती कार देश में उपलब्ध नहीं है। भले ही रतन टाटा रिटायर्ड हो गए हों, लेकिन उनके किए काम को आज नहीं, हमेशा के लिए याद रखा जाएगा।