मंदी के दौर में खरीदी दो विदेशी कंपनी, आज विदेशी भी मानते हैं लोहा
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बात उस समय की है जब टाटा मोटर्स केवल हैवी व्हीकल यानि कमर्शियल व्हीकल निर्माण क्षेत्र में काम करती थी। उस समय रतन टाटा कंपनी के डायरेक्टर थे। देश में बढ़ती पैसेन्जर कार की डिमांड को देखते हुए उन्होंने फैसला किया कि कार निर्माण में भी हाथ आजमाया जाए। लेकिन टाटा की कारों को ज्यादा पसंद नहीं किया गया। ऐसे में साल 1998 में रतन टाटा ने फोर्ड मोटर कंपनी से एक डील के तहत पैसेन्जर कार बिजनेस को बेचने का फैसला किया। सब कुछ फाइनल जब सब कुछ फाइनल होता दिख रहा था तब अचानक फोर्ड के अधिकारियों ने डील करने से मना कर दिया।